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History of Jaipur


कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ राजस्थान का इतिहास प्रसिद्ध नगर। कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरूष श्रीरामचंद्रजी के पुत्र कुश को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारंभ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग ग्वालियर चले आए। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई. के लगभग, अयोध्‍या-नरेश लक्ष्‍मण ने ग्‍वालियर में अपना प्रभुतव स्‍थापित किया और तत्‍पश्‍चात इनके वंशज दौसा नामक स्‍थान पर आए और उन्‍होंने मीणाओं से आमेर का इलाका छीनकर इस स्‍थान पर अपनी राजधानी बनाई। इतिहासकारों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. में जब राज्‍य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्‍य के भीतरी भाग में चले गए किंतु शीघ्र ही उन्‍होंने किले को पुन: हस्‍तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में भारमल आमेर का राजा था। उसने हुमायूं और फिर अकबर से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री जोधाबाई का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवानदास ने भी अकबर के पुत्र सलीम के साथ अपनी पुत्री का विवाह करके पुराने मैत्री-संबंध बनाए रखे। भगवानदास को अकबर ने पंजाब का सूबेदार नियुक्‍त किया था। उसने 16 वर्ष तक आमेर में राज्‍य किया। उसके बाद उसका पुत्र मानसिंह 1590-1614 ई. तक आमेर का राजा रहा। मानसिंह अकबर का विश्‍वस्‍त सेनापति था। कहते है उसी के कहने से अकबर ने चित्‍तौड़ नरेश राणा प्रताप पर आक्रमण किया था (1577)।
मानसिंह के जयसिंह प्रथम ने गद्दी संभाली। उसने भी शाहजहां और औरंगजेब से मित्रता की नीति जारी रखी। जयसिंह प्रथम शिवाजी को औरंगजेब के दरबार में लाने में समर्थ हुआ था। कहा जाता है जयसिंह को औरंगजेब ने 1667 ई. में जहर देकर मरवा डाला था।
1699-1743 ई. तक आमेर पर जयसिंह द्वितीय का राज्‍य रहा। इसने सवाईकी उपाधि ग्रहण की। यह बड़ा ज्‍योतिषविद और वास्‍तुकलाविशारद था। इसी ने 1728 ई. में वर्तमान जयपुर नगर बसाया। आमेर का प्राचीन दुर्ग एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है जो 350 फुट ऊंची है। इस कारण इस नगर के विस्‍तार के लिए पर्याप्‍त स्‍थान नहीं था। 


सवाई जयसिंह ने नए नगर जयपुर को आमेर से तीन मील की दूरी पर मैदान में बसाया। इसका क्षेत्रफल तीन वर्गमील रखा गया। नगर को परकोटे और सात प्रवेश द्वारों से सुरक्षित बनाया गया। चौपड़ के नक्‍शे के अनुसार ही सड़कें बनवायी गई। पूर्व से पश्चिम की ओर जोन वाली मुख्‍य सड़क 111 फुट चौड़ी रखी गई। यह सड़क, एक दूसरी उतनी ही चौड़ी सड़क को ईश्‍वर लाट के निकट समकोण पर काटती थी। कई गलियां जो चौड़ाई में इनकी आधी या 27 फुट थी, नगर के भीतरी भागों से आकर मुख्‍य सड़क से मिलती थी। सड़कों के किनारों के सारे मकान लाल बलुवा पत्‍थर के बनवाए गए थे। जिससे सारा नगर गुलाबी रंग का दिखाई देता था। राजमहल नगर के केंद्र में बनाया गया था। यह सात मंजिला है। इसमें एक दीवानेखास है। इसके समीप ही तत्‍कालीन सचिवालय-बावन कचहरी- स्थित है। 

18 वीं शती में राजा माधोसिंह का बनवाया हुआ छ: मंजिला हवामहल भी नगर की मुख्‍य सड़क पर ही दिखाई देता है। राजा जयसिंह द्व‍ितीय ने जयपुर, दिल्‍ली, मथुरा, बनारस और उज्‍जैन में वेधशालाएं भी बनाई थी। जयपुर की वेधशाला इन सबसे बड़ी है। कहा जाता है कि नगर का नक्‍शा बनाने में दो बंगाली पंडितों से विशेष सहायता प्राप्‍त हुई थी।  


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