जयपुर से छ: मील दूर जयपुर राज्य की प्राचीन
राजधानी। कहा जाता है कि 1129 ई. के लगभग कछवाहा राजपूतों को ग्वालियर से परिहारों
ने निकाल दिया था। कछवाहा राजकुमार तेजकरो अपनी नवोढ़ा पत्नी सुन्दरी मरोनी के
प्रेमपाश में बंध कर राजकाज भूल बैठा था जिसके फलस्वरूप उसके भतीजे परिहार ने उसे
राज्यच्युत कर दिया। कछवाहों ने निष्कासित होने के पश्चात जंगली मीनाओं की सहायता
से ढुंढार की रियासत स्थापित की। आमेर ढुंढार की राजधानी थी। जयसिंह द्वितीय के
समय तक (1730 ई. के कुछ पूर्व) कछवाहों की राजधानी आमेर नगर में ही रही।
जयसिंह
द्वितीय ने ही जयपुर बसाया और अपनी राजधानी नए नगर में बनाई। आमेर में अकबर के
दरबार के रत्न महाराजा मानसिंह द्वारा निर्मित दुर्ग और प्रासाद पहाड़ी के ऊपर
स्थित हैं। इनके भीतर दरबार, दीवाने-आम, गणेशपोल,
रंगमहल, यशमंदिर, सुहाग
मंदिर इत्यादि उल्लेखनीय हैं। कहते है कि आमेर के भवनों की नक्काशी मुगल सम्राटों
को इतनी भायी कि उसी का अनुकरण उन्होंने दिल्ली और आगरा के भवनों में किया। आमेर
के दुर्ग का शीशमहल भारत में प्रसिद्ध है। इसी के लिए जयसिंह प्रथम के राजकवि
बिहारीलाल ने लिखा था- ''प्रतिबिंबित जयसाह दुति दीपत दरपन
धाम, सब जग जीतन को कियो कामव्यूह मनु काम’’। आमेर का कालीमंदिर बहुत प्राचीन है। संभवत: कछवाहों के आमेर में बसने के
पूर्व काली यहां रहने वाली मीना जाति की इष्टदेवी थी। आमेर नाम की व्यत्पत्ति भी
अंबानगर से जान पड़ती है। श्री न. ला. डे के अनुसार आमेर का असली नाम अंबरीषपुर था
और इसे पौराणिक नरेश अंबरीष ने बसाया था।
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