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Showing posts from August, 2019

History of Ajmer

ऐतिहासिक परंपराओं से ज्ञात होता है कि राजा अजयदेव चौहान ने 1100 ई. में अजमेर की स्‍थापना की थी। संभव है कि पुष्‍कर अथवा अनासागर झील के निकट होने से अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेेर (मेर या मीर-झील , जैसे कश्‍यपमीर - काश्‍मीर) रखा हो। उन्‍होंने तारागढ़ की पहाड़ी पर एक किला गढ़-बिठली नाम से बनवाया था जिसे कर्नल टाड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में राजपूताने की कुंजी कहा है। अजमेर में , 1153 ई. में मुहम्‍मद गौरी ने नष्‍ट करके उसके स्‍थान पर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनवाई थी। कुछ विद्वानों का मत है कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था। कहावत है कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी कितु इतिहासकारों का मत है कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्‍थान पर मराठाकाल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है। इस इमारत की कारीगरी विशेषकर पत्‍थर की नक्‍़काशी प्रशंसनीय है। इससे पहले सोमनाथ जाते समय (1124 ई.) महमूद गजनवी अजमेर होकर गया था। मुहम्‍मद गौरी ने जब 1192 ई. में भारत पर आक्रमण किया तो उस समय अजमेर पृथ्‍वीराज के राज्‍य का एक बड़ा नगर था। पृथ्‍वीराज की पराजय के पश्‍चात दिल्‍ली पर मुसलमान...

History of Jodhpur

भूतपूर्व जोधपुर रियासत का मुख्‍य नगर। रियासत को मारवाड़ भी कहते थे। यहां के राजपूत राजा कन्‍नौज के राठोड़ - नरेश जयचंद के वंशज है। मूलत: ये राष्‍ट्रकूटों की एक शाखा से संबंधित थे जो कन्‍नौज में 946-959 ई. के बीच में , जाकर बस गई थी। 1194 ई. में जयचंद के मुहम्‍द गौरी द्वारा पराजित होने पर उसका एक भतीजा सालाजी मारवाड़ चला आया और यहां आकर उसने हटबेदी में राजधानी बनाई (1212 ई.)। 1381 ई. में राजधानी मंडोर लाई गई और तत्‍पश्‍चात 1459 ई. में में जोधपुर। इसका कारण यह था कि मेवाड़ के नाबालिग शासक के अभिभावक चौंडा ने मंडौर नरेश रनमल को युद्ध में हरा दिया जिससे रनमल के पुत्र जोधा को मंडौर छोड़कर भागना पड़ा। यद्यपि उसने मं डो र पर 1459 ई. में पुन: अधिकार कर लिया किंतु सुरक्षा के विचार से एक वर्ष पहले वह जोधपुर के गिरिदुर्ग में जाकर बस गया था और वहीं अगले वर्ष उसने जोधपुर नगर की नींव डाली। इसका शासनकाल 1458 से 1488 ई . तक था। जोधपुर के राठौर राजा मालदेव ने 1543 ई. में शेरशाह सूरी से युद्ध किया और 1562 ई. में अकबर से। इसके पश्‍चात जोधपुर नरेश मुगलों के सहायक और मित्र बन गए। औरंगजेब के समय में रा...

History of Jaipur

कछवाहा राजा जयसिंह द्वितीय का बसाया हुआ राजस्थान का इतिहास प्रसिद्ध नगर। कछवाहा राजपूत अपने वंश का आदि पुरूष श्रीरामचंद्रजी के पुत्र कुश को मानते हैं। उनका कहना है कि प्रारंभ में उनके वंश के लोग रोहतासगढ़ (बिहार) में जाकर बसे थे। तीसरी शती ई. में वे लोग ग्वालियर चले आए। एक ऐतिहासिक अनुश्रुति के आधार पर यह भी कहा जाता है कि 1068 ई . के लगभग , अयोध्‍या-नरेश लक्ष्‍मण ने ग्‍वालियर में अपना प्रभुतव स्‍थापित किया और तत्‍पश्‍चात इनके वंशज दौसा नामक स्‍थान पर आए और उन्‍होंने मीणाओं से आमेर का इलाका छीनकर इस स्‍थान पर अपनी राजधानी बनाई। इतिहासकारों का यह भी मत है कि आमेर का गिरिदुर्ग 967 ई. में ढोलाराज ने बनवाया था और यहीं 1150 ई. में जब राज्‍य के प्रसिद्ध दुर्ग रणथंभौर पर अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया तो आमेर नरेश राज्‍य के भीतरी भाग में चले गए किंतु शीघ्र ही उन्‍होंने किले को पुन: हस्‍तगत कर लिया और अलाउद्दीन से संधि कर ली। 1548-74 ई. में भारमल आमेर का राजा था। उसने हुमायूं और फिर अकबर से मैत्री की और अकबर के साथ अपनी पुत्री जोधाबाई का विवाह भी कर दिया। उसके पुत्र भगवानदास ने भी अकबर के...

History of Amber, ancient capital of the state of Jaipur in Rajasthan

जयपुर से छ: मील दूर जयपुर राज्य की प्राचीन राजधानी। कहा जाता है कि 1129 ई. के लगभग कछवाहा राजपूतों को ग्वालियर से परिहारों ने निकाल दिया था। कछवाहा राजकुमार तेजकरो अपनी नवोढ़ा पत्नी सुन्दरी मरोनी के प्रेमपाश में बंध कर राजकाज भूल बैठा था जिसके फलस्वरूप उसके भतीजे परिहार ने उसे राज्यच्युत कर दिया। कछवाहों ने निष्कासित होने के पश्चात जंगली मीनाओं की सहायता से ढुंढार की रियासत स्थापित की। आमेर ढुंढार की राजधानी थी। जयसिंह द्वितीय के समय तक (1730 ई. के कुछ पूर्व) कछवाहों की राजधानी आमेर नगर में ही रही।  जयसिंह द्वितीय ने ही जयपुर बसाया और अपनी राजधानी नए नगर में बनाई।  आमेर में अकबर के दरबार के रत्न महाराजा मानसिंह द्वारा निर्मित दुर्ग और प्रासाद पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। इनके भीतर दरबार , दीवाने-आम , गणेशपोल , रंगमहल , यशमंदिर , सुहाग मंदिर इत्यादि उल्लेखनीय हैं। कहते है कि आमेर के भवनों की नक्काशी मुगल सम्राटों को इतनी भायी कि उसी का अनुकरण उन्होंने दिल्ली और आगरा के भवनों में किया। आमेर के दुर्ग का शीशमहल भारत में प्रसिद्ध है। इसी के लिए जयसिंह प्रथम के राजकवि बिहारी...

औरंगजेब की कसौटी पर ख़रे उतरे जयपुर के महाराजा जयसिंह और दे दी सवाई की उपाधि

बादशाह ने उसके दोनों हाथ पकड़कर पूछा ‘’ अब तू क्‍या कर सकता है ’’ तभी जयसिंह ने उत्‍तर दिया ‘’ अब तो मैं बहुत कुछ कर सकता हूँ क्‍योंकि जब पुरुष स्‍त्री का हाथ पकड़ लेता है तो उसे कुछ अधिकार मिल जाते हैं। आप जैसे बादशाह ने तो मेरे दोनों हाथ पकड़ लिये हैं , इसलिये मैं तो सबसे बढ़कर हो गया। ‘’