ऐतिहासिक परंपराओं से ज्ञात होता है कि राजा अजयदेव चौहान ने 1100 ई. में अजमेर की स्थापना की थी। संभव है कि पुष्कर अथवा अनासागर झील के निकट होने से अजयदेव ने अपनी राजधानी का नाम अजयमेेर (मेर या मीर-झील , जैसे कश्यपमीर - काश्मीर) रखा हो। उन्होंने तारागढ़ की पहाड़ी पर एक किला गढ़-बिठली नाम से बनवाया था जिसे कर्नल टाड ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रंथ में राजपूताने की कुंजी कहा है। अजमेर में , 1153 ई. में मुहम्मद गौरी ने नष्ट करके उसके स्थान पर अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद बनवाई थी। कुछ विद्वानों का मत है कि इसका निर्माता कुतुबुद्दीन ऐबक था। कहावत है कि यह इमारत अढ़ाई दिन में बनकर तैयार हुई थी कितु इतिहासकारों का मत है कि इस नाम के पड़ने का कारण इस स्थान पर मराठाकाल में होने वाला अढ़ाई दिन का मेला है। इस इमारत की कारीगरी विशेषकर पत्थर की नक़्काशी प्रशंसनीय है। इससे पहले सोमनाथ जाते समय (1124 ई.) महमूद गजनवी अजमेर होकर गया था। मुहम्मद गौरी ने जब 1192 ई. में भारत पर आक्रमण किया तो उस समय अजमेर पृथ्वीराज के राज्य का एक बड़ा नगर था। पृथ्वीराज की पराजय के पश्चात दिल्ली पर मुसलमान...
भूतपूर्व जोधपुर रियासत का मुख्य नगर। रियासत को मारवाड़ भी कहते थे। यहां के राजपूत राजा कन्नौज के राठोड़ - नरेश जयचंद के वंशज है। मूलत: ये राष्ट्रकूटों की एक शाखा से संबंधित थे जो कन्नौज में 946-959 ई. के बीच में , जाकर बस गई थी। 1194 ई. में जयचंद के मुहम्द गौरी द्वारा पराजित होने पर उसका एक भतीजा सालाजी मारवाड़ चला आया और यहां आकर उसने हटबेदी में राजधानी बनाई (1212 ई.)। 1381 ई. में राजधानी मंडोर लाई गई और तत्पश्चात 1459 ई. में में जोधपुर। इसका कारण यह था कि मेवाड़ के नाबालिग शासक के अभिभावक चौंडा ने मंडौर नरेश रनमल को युद्ध में हरा दिया जिससे रनमल के पुत्र जोधा को मंडौर छोड़कर भागना पड़ा। यद्यपि उसने मं डो र पर 1459 ई. में पुन: अधिकार कर लिया किंतु सुरक्षा के विचार से एक वर्ष पहले वह जोधपुर के गिरिदुर्ग में जाकर बस गया था और वहीं अगले वर्ष उसने जोधपुर नगर की नींव डाली। इसका शासनकाल 1458 से 1488 ई . तक था। जोधपुर के राठौर राजा मालदेव ने 1543 ई. में शेरशाह सूरी से युद्ध किया और 1562 ई. में अकबर से। इसके पश्चात जोधपुर नरेश मुगलों के सहायक और मित्र बन गए। औरंगजेब के समय में रा...